Saturday, September 27, 2025
HomeNewsराहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा: लोकतंत्र की रक्षा या राजनीतिक रणनीति?

राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा: लोकतंत्र की रक्षा या राजनीतिक रणनीति?

17 अगस्त 2025 को बिहार के सासाराम से शुरू हुई राहुल गांधी की “वोटर अधिकार यात्रा” ने भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा है। यह 16 दिनों की यात्रा, जो 1 सितंबर को पटना में समाप्त होगी, लगभग 1300 किलोमीटर की दूरी तय करेगी और बिहार के 20 से 25 जिलों को कवर करेगी। इस यात्रा का घोषित उद्देश्य मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं, विशेष रूप से विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया, और “वोट चोरी” के खिलाफ जनजागरूकता फैलाना है। कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इसे “लोकतंत्र, संविधान, और ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ के सिद्धांत की रक्षा” का आंदोलन बताया है। लेकिन क्या यह यात्रा वास्तव में लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए है, या यह बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एक सुनियोजित राजनीतिक रणनीति है? आइए इसकी गहराई से पड़ताल करें।

 

वोटर अधिकार यात्रा: पृष्ठभूमि और उद्देश्य
राहुल गांधी ने इस यात्रा की शुरुआत सासाराम के सुआरा हवाई अड्डा मैदान से की, जिसमें इंडिया गठबंधन के कई प्रमुख नेता, जैसे राजद के तेजस्वी यादव, भाकपा माले के दीपांकर भट्टाचार्य, और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हुए। यह यात्रा बिहार में चल रही SIR प्रक्रिया के खिलाफ शुरू की गई, जिसके तहत मतदाता सूची से कथित तौर पर 65 लाख नाम हटाए गए हैं।

राहुल गांधी और उनके सहयोगियों का दावा है कि यह प्रक्रिया भाजपा के इशारे पर हो रही है, जिसका उद्देश्य दलितों, अल्पसंख्यकों, और गरीबों के वोटिंग अधिकारों को कमजोर करना है।

राहुल गांधी ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, “यह सिर्फ एक चुनावी मुद्दा नहीं, बल्कि लोकतंत्र और संविधान की रक्षा का संग्राम है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग डिजिटल मतदाता सूची और वोटिंग सेंटर्स की सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराने में असमर्थ रहा है, जो उनके अनुसार पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है।

इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी और उनके सहयोगी बिहार के विभिन्न जिलों में जनसभाएँ, पदयात्राएँ, और रैलियाँ आयोजित कर रहे हैं, ताकि जनता को मतदाता सूची की कथित गड़बड़ियों के प्रति जागरूक किया जा सके।

आलोचनात्मक दृष्टिकोण: क्या है असली मंशा?
राहुल गांधी की यह यात्रा निश्चित रूप से ध्यान आकर्षित करने में सफल रही है, लेकिन कई सवाल इसके उद्देश्यों और प्रभाव को लेकर उठ रहे हैं। आलोचकों का मानना है कि यह यात्रा बिहार विधानसभा चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन, विशेष रूप से कांग्रेस और राजद, को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा है।

बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए ने 125 सीटें जीती थीं, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं। इस यात्रा के रास्ते में आने वाली 50 विधानसभा सीटों में से 21 पर महागठबंधन का कब्जा है, जिसे और मजबूत करने की कोशिश हो सकती है।

भाजपा और जदयू नेताओं ने इस यात्रा को “राजनीतिक नौटंकी” और “जनता को गुमराह करने की कोशिश” करार दिया है। बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा, “राहुल गांधी की यात्रा की शुरुआत में ही हवा निकल गई है, क्योंकि बिहार की जनता समझ चुकी है कि कोई भी उनके वोट चुराने का हक नहीं रखता।” जदयू नेता प्रणव पांडेय ने इसे “भ्रम फैलाने” का प्रयास बताया। उनका तर्क है कि SIR प्रक्रिया मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए है, जिसमें मृत या बाहर जा चुके लोगों के नाम हटाए जाते हैं।

 

क्या राहुल गांधी के दावों में दम है?
राहुल गांधी ने वोट चोरी के अपने दावों को मजबूत करने के लिए कुछ उदाहरण दिए हैं, जैसे महाराष्ट्र में पांच महीने में एक करोड़ नए वोटरों के जुड़ने का दावा। उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों को मृत घोषित किया गया, उनके साथ उन्होंने चाय पी। हालांकि, चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से इन दावों के समर्थन में सबूत मांगे हैं, और कहा है कि बिना सबूत के आरोप वापस लेने होंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में चुनाव आयोग को 65 लाख हटाए गए वोटरों की सूची ऑनलाइन उपलब्ध कराने और हटाने के कारण बताने का आदेश दिया है, जो विपक्ष के दावों को कुछ हद तक बल देता है।

लेकिन आलोचकों का कहना है कि राहुल गांधी के दावे अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकते हैं। SIR प्रक्रिया एक नियमित प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना है। यदि इसमें गड़बड़ियाँ हैं, तो इसे ठीक करने के लिए कानूनी और प्रशासनिक रास्ते उपलब्ध हैं। राहुल गांधी का सड़कों पर उतरना और इसे “वोट चोरी” से जोड़ना, कुछ लोगों के लिए, राजनीतिक नाटकबाजी का हिस्सा लगता है।

यात्रा का प्रभाव और भविष्ययह यात्रा निश्चित रूप से बिहार में विपक्षी गठबंधन की एकजुटता को दर्शाती है। तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी को “बड़ा भाई” और मल्लिकार्जुन खड़गे को “अभिभावक” बताकर गठबंधन की मजबूती का संदेश दिया है। लेकिन क्या यह यात्रा वास्तव में मतदाताओं को प्रभावित कर पाएगी? बिहार की जनता, जो पहले भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा देख चुकी है, इस बार कितना समर्थन देगी, यह देखना बाकी है।

आलोचकों का यह भी कहना है कि राहुल गांधी की यह यात्रा उनके पुराने “पप्पू” इमेज को तोड़ने का एक और प्रयास है, लेकिन बार-बार यात्राओं से जनता में थकान भी आ सकती है। साथ ही, लालू यादव और तेजस्वी यादव के साथ उनकी साझेदारी को लेकर कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि क्या यह कांग्रेस को बिहार में मजबूत करेगी या राजद के लिए सिर्फ एक सहायक भूमिका निभाएगी।

राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा एक महत्वाकांक्षी कदम है, जो लोकतंत्र और मतदाता अधिकारों के नाम पर शुरू की गई है। लेकिन इसके पीछे की मंशा, प्रभाव, और परिणाम को लेकर सवाल बने हुए हैं। क्या यह यात्रा वास्तव में मतदाता सूची की गड़बड़ियों को उजागर करेगी, या यह बिहार विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष की रणनीति का हिस्सा है? समय ही इसका जवाब देगा। फिलहाल, यह यात्रा बिहार की सियासी जमीन को गर्म करने में जरूर कामयाब हो रही है।

 

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments