Wednesday, July 23, 2025
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2024: भारत की विदेश नीति और वैश्विक चुनौतियाँ! 

2024 में, दुनिया एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी होगी, जहां वैश्विक संकट और भू-राजनीतिक तनाव अपनी चरम सीमा पर पहुंच सकते हैं। यूरोप और मध्य पूर्व में संघर्षों ने वैश्विक व्यवस्था को उलट दिया है, जिससे ऊर्जा आपूर्ति और खाद्य सुरक्षा पर गहरा असर पड़ा है। दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता और भारत के साथ उसकी सीमा विवाद ने एशियाई क्षेत्र में अस्थिरता पैदा की है। यूरोप में, यूक्रेन संघर्ष वैश्विक ऊर्जा संकट को और बढ़ा रहा है,

जबकि मध्य पूर्व में इज़राइल-हमास संघर्ष ने क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ाया है। इन सभी संकटों के बीच, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक-आर्थिक असमानता के बढ़ते खतरे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विक चुनौतियाँ आपस में गहरे तरीके से जुड़ी हुई हैं और उनके समाधान के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।

भारत की कूटनीति: समायोजन और लचीलापन
इस वैश्विक अस्थिरता के बीच, भारत ने अपनी विदेश नीति में चतुराई, स्पष्टता और लचीलापन दिखाया है। वैश्विक जुड़ाव के साथ अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को संतुलित करते हुए, भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि उसके राष्ट्रीय हितों की रक्षा हो और साथ ही वैश्विक स्थिरता में भी योगदान दिया जाए। ऊर्जा आपूर्ति में विविधता लाने और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में साझेदारियों को बढ़ावा देने जैसी रणनीतियाँ भारत को वैश्विक ऊर्जा संकट से निपटने के लिए एक व्यावहारिक मार्ग पर अग्रसर कर रही हैं।

ट्रम्प की वापसी: अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव
2024 में होने वाले प्रमुख चुनावों ने वैश्विक राजनीति में नई अनिश्चितताओं को जन्म दिया है, खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी के साथ। ट्रम्प का रुख भारत के लिए कुछ अवसर और चुनौतियाँ दोनों लेकर आ सकता है। उनका प्राथमिक ध्यान चीन के खिलाफ ठोस कदम उठाने, लोकतांत्रिक देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने और वैश्विक संघर्षों को समाप्त करने पर होगा, जो भारत के लक्ष्यों से मेल खाता है।

हालांकि, व्यापार नीतियों में बदलाव और गठबंधनों को लेकर ट्रम्प की व्यावसायिक दृष्टि भारत के लिए सावधानीपूर्वक नीतिगत रणनीति की मांग करेगी। इसके अलावा, उनके कठोर आव्रजन नियमों से भारतीय प्रवासी समुदाय पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है, खासकर H-1B वीजा और परिवार आधारित आव्रजन कार्यक्रमों पर।

भारत का नेतृत्व: जी-20 और वैश्विक साझेदारी
भारत ने जी-20 के तहत वैश्विक मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है, जहां ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसी देशों के नेतृत्व के तहत भारत की विरासत को बढ़ावा दिया जा रहा है।

मानव केंद्रित वैश्वीकरण की दिशा में भारत का निरंतर योगदान, विशेष रूप से डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं की समान पहुंच, वैक्सीनेशन कूटनीति और जलवायु वित्तपोषण जैसे क्षेत्रों में, इसे वैश्विक साझेदारी के एक अग्रणी उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करता है। भारत ने खुद को न केवल वैश्विक विकास के लिए भागीदार के रूप में स्थापित किया है, बल्कि शांतिपूर्ण और समतापूर्ण वैश्विक व्यवस्था की ओर अपनी प्रतिबद्धता भी जताई है।

प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक रणनीतियों ने भारत को दुनिया के सामने एक विश्वसनीय और जिम्मेदार शक्ति के रूप में स्थापित किया है। रूस-यूक्रेन संकट में उनकी शांति प्रयासों को लेकर की गई यात्राओं ने यह साबित कर दिया कि भारत संवाद और कूटनीति के माध्यम से वैश्विक शांति की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहा है।

रक्षा और आत्मनिर्भरता: राष्ट्रीय सुरक्षा की ओर कदम
2024 के वैश्विक संघर्षों ने देशों को अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की आवश्यकता को और अधिक स्पष्ट किया है। भारत का 81 बिलियन डॉलर का रक्षा बजट राष्ट्रीय सुरक्षा की दिशा में उसके मजबूत संकल्प को दर्शाता है। बढ़ती भू-राजनीतिक अस्थिरता के बीच, भारत ने रक्षा विनिर्माण और उभरती प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

क्षेत्रीय स्तर पर, भारत को श्रीलंका, मालदीव और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इसके बावजूद, भारत ने इन देशों को सहायता प्रदान करके क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित की है। वहीं, इज़राइल-हमास संघर्ष ने भारत के कूटनीतिक संतुलन को भी चुनौती दी, लेकिन उसने अपनी रणनीति में मानवाधिकारों और शांति की ओर अपना रुख बनाए रखा है।

रणनीतिक स्वायत्तता: आने वाली चुनौतियों का सामना
2025 के करीब आते हुए, भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता की नीति को बनाए रखते हुए उभरती भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना होगा। अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक रिश्तों को और मजबूत करना एक महत्वपूर्ण अवसर है, लेकिन साथ ही चीन के साथ बढ़ती तनाव की स्थिति को भी सख्ती से प्रबंधित करना होगा। भारत के लिए यह आवश्यक होगा कि वह क्वाड और ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय मंचों का लाभ उठाकर क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखे।

भारत का ‘पड़ोस पहले’ दृष्टिकोण भी वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रधानमंत्री मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति को आगे बढ़ाते हुए, भारत को अपने नजदीकी पड़ोसियों के साथ मजबूत और स्थिर संबंधों की आवश्यकता होगी, ताकि राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित किया जा सके।

वैश्विक मंच पर भारत का दृष्टिकोण
भारत की जी-20 की सफलता को और आगे बढ़ाते हुए, इसे वैश्विक दक्षिण की चिंताओं का समाधान करने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। ऋण राहत, जलवायु वित्तपोषण और विकासशील देशों के लिए बुनियादी ढांचे के विकास में समर्थन भारत की वैश्विक छवि को और मजबूत करेगा। साथ ही, डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश और ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में कदम बढ़ाने से भारत न केवल अपनी तकनीकी नेतृत्व क्षमता को बढ़ावा देगा, बल्कि समावेशी विकास को भी प्रोत्साहित करेगा।

2024 में दुनिया में अनिश्चितता और संकट का माहौल है, लेकिन भारत ने अपनी कूटनीतिक समझदारी, मजबूत रक्षा नीति और रणनीतिक स्वायत्तता से वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और मजबूत किया है। आने वाले वर्षों में, भारत को इन वैश्विक चुनौतियों का सामना करते हुए, समग्र विकास और वैश्विक शांति की दिशा में सक्रिय रूप से काम करना होगा।

 

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