यह वर्ष भारत के लिए महत्वपूर्ण कूटनीतिक और वैश्विक सफलता का वर्ष रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विदेश नीति को नई दिशा देने में सफलता प्राप्त की। एक ओर, जहां कुवैत में उनकी ऐतिहासिक यात्रा से भारत और कुवैत के बीच संबंधों में नई मजबूती आई, वहीं दूसरी ओर भारत ने अपनी सीमाओं पर चीन के साथ जारी गतिरोध को सुलझाने में भी महत्वपूर्ण प्रगति की।
कुवैत यात्रा: मध्य-पूर्व में भारत की बढ़ती कूटनीतिक पैठ
वर्ष के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुवैत की ऐतिहासिक यात्रा की, जो 43 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी। कुवैत के अमीर शेख मेशल अल-अहमद अल-जबर अल सबा ने उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ से सम्मानित किया। यह सम्मान उन्होंने भारत के 1.4 बिलियन नागरिकों की ओर से स्वीकार किया। इस यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने राजनीति, व्यापार, निवेश, ऊर्जा, रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक और लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करते हुए अपनी साझेदारी को ‘रणनीतिक साझेदारी’ के रूप में स्थापित किया।
इस यात्रा ने भारत की मध्य-पूर्व में कूटनीतिक पहुंच को और मजबूत किया। विशेष रूप से, जब मध्य-पूर्व क्षेत्र में लगातार अशांति और संभावित क्षेत्रीय युद्ध का खतरा मंडरा रहा है, भारत की यह कूटनीतिक सफलता इसके वैश्विक प्रभाव और क्षमता को उजागर करती है।
भारत-चीन संबंध: एक नई दिशा की ओर
इस साल भारत और चीन ने 2020 के गलवान संकट के बाद पैदा हुए गतिरोध को समाप्त करने में महत्वपूर्ण कदम उठाए। इस संकट में दोनों देशों के बीच सीमा पर हिंसक झड़प हुई थी, जिसके बाद द्विपक्षीय संबंधों में भारी गिरावट आई थी। भारत ने स्पष्ट किया था कि जब तक LAC (लाइन ऑफ एक्टिव कंट्रोल) पर यथास्थिति बहाल नहीं हो जाती, तब तक चीन के साथ सामान्य संबंधों की कोई संभावना नहीं है।
अक्टूबर में, दोनों देशों ने अपनी सीमा पर गश्त करने का समझौता किया, जिससे चार साल से चल रहे गतिरोध को खत्म करने में मदद मिली। इसके बाद, प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच रूस में मुलाकात हुई, जो पिछले पांच वर्षों में पहली बार हुई थी। हालांकि, सीमा पर तनाव और चीन की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं के कारण भारत-चीन संबंधों में कई चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
भारत की वैश्विक कूटनीति: अमेरिका, रूस और बांग्लादेश
भारत ने अपनी कूटनीति को और विस्तृत किया, खासकर अमेरिका और रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया। अमेरिका के साथ, भारत ने अपने मतभेदों के बावजूद द्विपक्षीय संबंधों में निरंतर प्रगति की। रूस के साथ, भारत ने राजनीतिक संवाद और समान दूरी बनाए रखने के अपने रुख को कायम रखा, विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में।
इस वर्ष भारत को एक बड़ा झटका तब लगा जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को अगस्त में देश छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। इससे दिल्ली-ढाका संबंधों में उथल-पुथल की आशंका थी। हालांकि, मालदीव और श्रीलंका जैसे देशों के साथ भारत के संबंध स्थिर बने रहे, लेकिन बांग्लादेश में उत्पन्न अस्थिरता ने भारतीय कूटनीतिक प्रयासों को चुनौती दी।
भारत की बढ़ती वैश्विक छवि
भारत की वैश्विक छवि इस वर्ष बहुत मजबूत हुई है। भारत ने न केवल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी आवाज उठाई, बल्कि वैश्विक दक्षिण (Global South) के देशों के हितों को भी प्रमुखता दी। इसके साथ ही, दुनिया में भारत अब एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में उभरा है, जिसे दुनिया भर के देश आकर्षित करने के लिए तैयार हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की कुवैत यात्रा और भारत की बढ़ती कूटनीतिक सफलता इस बात का संकेत है कि भारत भविष्य में और भी सशक्त वैश्विक शक्ति के रूप में उभर सकता है, खासकर जब दुनिया की प्राथमिकताएँ बदल रही हैं और नए वैश्विक समीकरण उभर रहे हैं।
वर्ष 2024 भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ है। कुवैत यात्रा से लेकर चीन और अमेरिका के साथ संबंधों तक, भारत ने अपनी कूटनीति को न केवल बनाए रखा बल्कि उसे मजबूत भी किया। हालांकि, चुनौतियाँ अभी भी हैं, खासकर चीन और बांग्लादेश के संदर्भ में, लेकिन भारत ने इन चुनौतियों का सामना करते हुए अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को और मजबूत किया। आने वाले वर्षों में, यदि भारत अपनी कूटनीति को इसी तरह से सशक्त बनाता रहा, तो वह वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण बना सकता है।