2024 भारतीय राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने गठबंधनों को संभालने और विभिन्न राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने में अपनी रणनीतिक चतुराई को साबित किया। पार्टी ने इस साल की शुरुआत मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनावों में सफलता के साथ की, लेकिन असली परीक्षण लोकसभा चुनावों में था, जहां बीजेपी का मुख्य ध्यान अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने पर केंद्रित था।
बीजेपी का गठबंधन प्रबंधन और चुनावी रणनीति
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जहां-जहां गठबंधन किया, वहां- वहां अपने राजनीतिक प्रभाव को विस्तार देने का प्रयास किया। हरियाणा में पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया और जेजेपी से गठबंधन समाप्त कर दिया। वहीं बिहार में नीतीश कुमार को एनडीए में फिर से शामिल किया गया और कर्नाटक में जेडीएस को अपने गठबंधन में शामिल कर राज्य में कांग्रेस के खिलाफ संयुक्त लड़ाई लड़ी। ओडिशा में, बीजेपी ने बीजेडी से बातचीत के बाद अकेले चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय लिया, जबकि तमिलनाडु और पंजाब में नए गठबंधन बनाकर द्विध्रुवीय राजनीति को चुनौती दी।
आंध्र प्रदेश में, पार्टी ने टीडीपी-जन सेना गठबंधन को एनडीए में शामिल कर कांग्रेस और वाईएसआर कांग्रेस को चुनौती दी। उत्तर प्रदेश में भी पार्टी ने छोटे गठबंधन सहयोगियों को एनडीए में शामिल कर अपने प्रभाव को मजबूत किया। महाराष्ट्र में, बीजेपी ने शिवसेना और एनसीपी के बीच विभाजन का फायदा उठाया और दोनों गुटों को एनडीए में शामिल कर लिया।
इन प्रयासों का उद्देश्य था देश के चुनावी नक्शे पर अपनी पकड़ को और मजबूत करना। बीजेपी ने “400+” का नारा देकर अपनी रणनीतिक सफलता का आत्मविश्वास दिखाया था, लेकिन चुनाव परिणाम कुछ अलग ही कहानी कह रहे थे।
2024 चुनाव परिणाम: गठबंधन सहयोगियों की सफलता, भाजपा की कमजोरी
2024 के चुनाव परिणामों ने दिखाया कि जहां अधिकांश गठबंधन सहयोगी (तमिलनाडु और पंजाब को छोड़कर) ने अच्छा प्रदर्शन किया, वहीं बीजेपी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक कमजोर था। बीजेपी की सीटें 2019 में 303 से घटकर 240 रह गईं, यानी 63 सीटों की कमी आई। इसके परिणामस्वरूप, बीजेपी को अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ मिलकर एनडीए की जीत का दावा करना पड़ा, क्योंकि पार्टी अपने दम पर बहुमत हासिल करने से चूक गई। यह संकेत था कि भारत में एक नई गठबंधन सरकार का युग फिर से आ चुका है, और इस बार पुराने तरीकों से अलग बदलाव की उम्मीद की जा रही थी।
मंत्रिमंडल गठन: गठबंधन के भीतर समायोजन और सहमति
मंत्रिमंडल के गठन के समय, गठबंधन सहयोगियों को प्रतिनिधित्व मिला, लेकिन विभागों का वितरण 2014 और 2019 के चुनावों में देखे गए पैटर्न जैसा था। जेडीयू और टीडीपी जैसे प्रमुख सहयोगी अधिकतर अपने राज्यों के लिए विशेष ध्यान और लाभ चाहते थे, जबकि एनसीपी के अजित पवार गुट को मंत्रिमंडल में जगह देने के लिए बीजेपी तैयार नहीं थी। इस प्रकार, हालांकि गठबंधन सहयोगियों को कुछ प्रतिनिधित्व मिला, लेकिन बीजेपी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखने में सफलता पाई।
महाराष्ट्र और झारखंड में बीजेपी की चुनौती
2024 में बीजेपी के गठबंधन कौशल का अगला परीक्षण महाराष्ट्र और झारखंड में था। महाराष्ट्र में भाजपा ने महायुति (एनडीए गठबंधन) के भीतर सीटों का सही बंटवारा किया, जबकि झारखंड में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा। झारखंड में सीटों के बंटवारे में बीजेपी ने एनडीए के भीतर सीटों का एक बड़ा हिस्सा अपने पास रखा, लेकिन आदिवासी सीटों पर गठबंधन की अक्षमता के कारण झामुमो का नेतृत्व फिर से सत्ता में आ गया। वहीं महाराष्ट्र में, बीजेपी ने गठबंधन की सीटों को ठीक तरह से वितरित किया और शिंदे गुट को सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया, लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर काफी बातचीत और चुप्पी देखने को मिली।
मुख्यमंत्री पद का निर्णय: बीजेपी की सशक्त गठबंधन रणनीति
महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों के बाद, मुख्यमंत्री पद के चयन को लेकर लंबा सस्पेंस बना रहा। भाजपा ने यह दिखाया कि किस तरह वह अपने गठबंधन सहयोगियों को राजी कर सकती है। एकनाथ शिंदे को उपमुख्यमंत्री बनने के लिए राजी किया गया और उन्हें शहरी विकास मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग दिए गए, जबकि बीजेपी के मंत्रियों को बेहतर सौदे मिले। इसने बीजेपी के गठबंधन प्रबंधन और वार्ता कौशल को साबित किया।
भविष्य की दिशा
2024 में बीजेपी ने अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ कुशलता से बातचीत करने और अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत करने में सफलता पाई है। अब 2025 में होने वाले महत्वपूर्ण राज्य चुनावों के मद्देनजर यह देखना होगा कि क्या यह रणनीति आगे भी जारी रहती है या कुछ नया मोड़ आता है। बीजेपी की सफलता या असफलता, दोनों ही मामलों में गठबंधन की राजनीति महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
2024 ने बीजेपी के गठबंधन कौशल और राजनीतिक चातुर्य को एक नई दिशा दी है। भले ही पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के अनुसार नहीं रहा, लेकिन गठबंधन की राजनीति में उसकी सक्षमता ने उसे सत्ता में बनाए रखा। आने वाले सालों में यह देखा जाएगा कि क्या बीजेपी अपनी गठबंधन रणनीतियों को और मजबूत कर पाएगी या फिर किसी नई चुनौती का सामना करना पड़ेगा।