Wednesday, July 23, 2025
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बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन और पश्चिमी दोगलापन: द इकोनॉमिस्ट की भूमिका

इस वर्ष, ब्रिटिश पत्रिका द इकोनॉमिस्ट ने बांग्लादेश को “इस साल का देश” चुना है। इस निर्णय के अनुसार, बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन न केवल इस देश के लिए, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक सकारात्मक घटनाक्रम माना गया है। बांग्लादेश ने पोलैंड, दक्षिण अफ्रीका, अर्जेंटीना और सीरिया जैसे अन्य दावेदारों को पीछे छोड़ते हुए यह प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त किया। यह फैसला इसलिए दिलचस्प है क्योंकि बांग्लादेश का ब्रिटिश हितों से सीरिया या पोलैंड जैसे देशों के मुकाबले कोई विशेष संबंध नहीं है, जहां पश्चिमी शक्तियाँ अधिक सक्रिय रूप से शामिल हैं।

पश्चिम का पाखंड
बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के संदर्भ में पश्चिमी देशों की भूमिका पर विचार करें तो यह साफ नजर आता है कि अमेरिका और ब्रिटेन की शेख हसीना के प्रति नफरत एक खामख्याली दृषटिकोन का हिस्सा है। शेख हसीना को हटाने की अपील करते हुए उनके शासन को लोकतंत्र के खिलाफ बताया गया, लेकिन यह सवाल उठता है कि बांग्लादेश में लोकतंत्र के मुद्दे पर अमेरिका और ब्रिटेन की इतनी चिंता क्यों है? क्या बांग्लादेश का लोकतांत्रिक स्वरूप अमेरिकी और ब्रिटिश हितों को प्रभावित करता है?

अमेरिका और ब्रिटेन, दोनों देशों के पास ऐसे कई साझेदार हैं जो न केवल लोकतांत्रिक नहीं हैं, बल्कि चुनावों और राजनीतिक असहमति की पूरी प्रक्रिया से दूर रहते हैं। इनमें से कई देशों में राजशाही, सैन्य तानाशाही, और कम्युनिस्ट शासन है, फिर भी उनके साथ पश्चिमी देशों के रिश्ते अच्छे बने रहते हैं। उदाहरण स्वरूप, चीन एक लोकतंत्र नहीं है, फिर भी पश्चिमी देशों के साथ उसका व्यापार और रणनीतिक रिश्ते प्रगाढ़ हैं। इसी तरह, वियतनाम के साथ भी पश्चिम ने कभी लोकतंत्र के मुद्दे को उठाने की जरूरत महसूस नहीं की।

पश्चिमी देशों की नीतियां: कमज़ोर देशों का शोषण
दरअसल, पश्चिमी देशों की राजनीति में लोकतंत्र का मुद्दा अक्सर केवल एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह केवल कमज़ोर देशों को राजनीतिक दबाव में डालने का एक तरीका है, ताकि इन देशों के नेतृत्व को अपनी दिशा बदलने पर मजबूर किया जा सके। म्यांमार पर अमेरिकी प्रतिबंध इसका एक उदाहरण है। म्यांमार की सैन्य सरकार के नियंत्रण के बावजूद, अमेरिका ने कभी यह नहीं सोचा कि इस नीति के कारण म्यांमार चीन के करीब जा सकता है, जो अमेरिका के सामरिक हितों के लिए नुकसानदेह हो सकता है।

इसी तरह, बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के कारण भारत के महत्वपूर्ण रणनीतिक हितों को अनदेखा किया गया है। शेख हसीना के शासन के दौरान भारत-बांग्लादेश के रिश्ते मजबूत हुए थे, जिसमें विभिन्न विकास परियोजनाएं और सीमा सुरक्षा के मुद्दे शामिल थे। शेख हसीना ने बांग्लादेश की धरती से भारत के खिलाफ सक्रिय विद्रोही समूहों को बाहर किया था, जो बीएनपी के शासन के दौरान संभव नहीं हो पाया। अब जब सत्ता परिवर्तन हो रहा है, तो चीन का बढ़ता प्रभाव बांग्लादेश में भारत के लिए एक नई चुनौती बन सकता है।

भारत की सुरक्षा चिंताएँ
पश्चिमी देशों का भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति दृष्टिकोण भी संदिग्ध है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन और अमेरिका ने हमेशा पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता दी है, चाहे पाकिस्तान के भीतर आतंकवाद और कट्टरवाद की स्थिति कितनी भी खराब क्यों न हो। अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी और पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ आतंकवाद का सहारा लेना, ये सभी घटनाएँ ब्रिटेन और अमेरिका की नीति में स्पष्ट रूप से अनदेखी की गई हैं। बांग्लादेश में इस्लामी ताकतों के बढ़ते प्रभाव पर भी पश्चिमी देशों की चुप्पी यह बताती है कि वे इस्लामवादियों के सत्ता में आने को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं हैं।

बांग्लादेश में इस्लामवाद का उदय
बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के साथ इस्लामी ताकतों का प्रभाव बढ़ने की संभावना को नजरअंदाज करना पश्चिमी मीडिया के लिए सुविधाजनक है। द इकोनॉमिस्ट ने इस सत्ता परिवर्तन को तानाशाही को उखाड़ फेंकने के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन यह नजरअंदाज किया कि बांग्लादेश में लंबे समय तक सैन्य शासन रहा है और बीएनपी, जो कभी सत्ता में थी, किसी भी तरह से कम तानाशाही नहीं थी। इसके अतिरिक्त, वर्तमान बांग्लादेशी नेतृत्व धर्मनिरपेक्ष संविधान को फिर से लिखने का इरादा रखता है, ताकि इसे और अधिक इस्लामी बनाया जा सके।

द इकोनॉमिस्ट ने बांग्लादेश में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया है, लेकिन यह सवाल उठता है कि “गैर-निरंकुश” या “लोकतांत्रिक ताकतें” कहां हैं? क्या वाकई बांग्लादेश में कोई ऐसी ताकत है जिसे पश्चिम “लोकतांत्रिक” मानता है?

यह स्पष्ट है कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन और लोकतंत्र के मुद्दे पर पश्चिमी मीडिया और नीतियों में एक बड़ा पाखंड है। जहां एक ओर लोकतंत्र और मानवाधिकारों की बातें की जाती हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे देशों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए जाते हैं जो लोकतांत्रिक मूल्यों से कोसों दूर हैं। बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के संदर्भ में पश्चिमी दृष्टिकोण को समझने से यह सवाल उठता है कि क्या यह नीतियां वास्तव में क्षेत्रीय स्थिरता और लोकतंत्र को बढ़ावा देने के बजाय केवल पश्चिमी हितों की रक्षा कर रही हैं?

इसलिए, हमें इस सत्ता परिवर्तन को केवल एक साधारण घटना के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे वैश्विक राजनीति और पश्चिमी दोगलेपन के संदर्भ में समझने की आवश्यकता है।

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